zindagi

ज़िन्दगी "
खिलते फूल , आज़ाद पंछी से है 
ये ज़िन्दगी 
उजले सवेरे और डालते चाँद से है 
ये ज़िन्दगी 
सूर्य की किरणों सी कठोर और चाँद की नरम चांदनी सी है 
ये ज़िन्दगी 

बीते कल के इतिहास और आने वाले कल की उमंग है ये ज़िन्दगी कभी फूलो सी खिली है .. ये ज़िन्दगी 
कही काटो का घेरा है 
कभी पंछी सी आज़ाद है 
तो किसी पंछी पर परिस्थियों का डेरा है 

कभी धुप में तप्ती है ...
तो कही छाव का बसेरा है 
आग सी है .. ये ज़िन्दगी 
कही राख का डेरा है कही दीपक सी है .. यह ज़िन्दगी 
तो कही अधिकता से .. दीपक के नीचे छाव का अँधेरा है 

कही मोहोबत के फूल है ..
तो कही नफरत का डेरा है 
कभी है ... राहो में काटे 
तो कही फूलो ने डेरा है 
कभी मिलाप का है ज़िन्दगी ...
तो कही विराह ने घेरा है सुख दुःख , आशा निराशा , 
प्यार नफरत , फूल काटे 
धुप छाव , उजाला अँधेरा 
ये सब ज़िन्दगी का ही गहना है 


"अतीत को भूलना , वर्तमान को जीना 
और भविष्य को बनाना "

ये ही ज़िन्दगी का मूल अकेला है
नदी 
 मैंने एक चंचल नदी को आवाज करते हुई 
कोई मधुर राग छेड़ कर बहते हुए देखा है 
उसकी चंचलता , उसकी सादगी को बहते देखा है 
मैंने जीवन देने वाली को बहते देखा है 
जो हिमालय में से ऐसे अपना रास्ता बनाती ही है 
जैसे शिव की जटाओ से गंगा 
मैंने उस चंचल सी युवती रूपक नदी को परिपक्‍व होते देखा है 
चंचलता से गंभीरता में प्रवेश करते हुए देखा है 
युवती से एक स्त्री बनते हुए देखा है 
अपने शिशुओं का पालन करते देखा है 
कोमल से कठोर बनते देखा है ..
मैंने एक बहती नदी में .. शक्ति का रूप देखा है 

पर 
आज वो शक्ति बेबस है 
प्राकर्तिक कृत्या है या मनुष्य का लालच 
मैंने उस नदी को आज विवश होते देखा है 
मलिनता की भेट चढ़ते देखा है 

मैंने उस नदी को विवश होते देखा है ..
बहते देखा है 
जो जीवन का रूप थी .. उस जीवन के लिए संघर्ष करते देखा है .. मैंने एक नदी को बहते देखा है 
इस वरदान को अभिशाप की बलि चढ़ते देखा है 
मैंने एक नदी को देखा है 
"बचाओ इस नदी को जो हमारे लिए वरदान है "
"शुद्धता में है , खरी 
सबकी पालनहार है "
मैंने उस देवीय शक्ति को भी झुकते देखा है 
मैंने एक नदी को देखा है 

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