ज़िन्दगी "
खिलते फूल , आज़ाद पंछी से है
ये ज़िन्दगी
उजले सवेरे और डालते चाँद से है
ये ज़िन्दगी
सूर्य की किरणों सी कठोर और चाँद की नरम चांदनी सी है
ये ज़िन्दगी
बीते कल के इतिहास और आने वाले कल की उमंग है ये ज़िन्दगी कभी फूलो सी खिली है .. ये ज़िन्दगी
कही काटो का घेरा है
कभी पंछी सी आज़ाद है
तो किसी पंछी पर परिस्थियों का डेरा है
कभी धुप में तप्ती है ...
तो कही छाव का बसेरा है
आग सी है .. ये ज़िन्दगी
कही राख का डेरा है कही दीपक सी है .. यह ज़िन्दगी
तो कही अधिकता से .. दीपक के नीचे छाव का अँधेरा है
कही मोहोबत के फूल है ..
तो कही नफरत का डेरा है
कभी है ... राहो में काटे
तो कही फूलो ने डेरा है
कभी मिलाप का है ज़िन्दगी ...
तो कही विराह ने घेरा है सुख दुःख , आशा निराशा ,
प्यार नफरत , फूल काटे
धुप छाव , उजाला अँधेरा
ये सब ज़िन्दगी का ही गहना है
"अतीत को भूलना , वर्तमान को जीना
और भविष्य को बनाना "
ये ही ज़िन्दगी का मूल अकेला है