अभिलाषा
चाहत नहीं है ,प्रेमाला में
गुंथी जाओ ...
चाह नहीं है .. अपने प्रेमी
को पुष्प की गंध की ...
तरह तर्साउन
चाह नहीं है .. संसार रूप
समुंदार में प्रवाह होती जाऊं चाह नहीं ... इश्क़ की आग में
खुद को मोम की तरह...
पिघलती जाऊं
चाहत नहीं है .. सब की तरह
लोभ में खुद के ईमान को बैच आऊं
"चाहत नहीं है अपने महल बनाऊं"
एक ही अभिलाषा है ..
अपने जीवन में बनाये गए
पथ पर चलती जाऊं
एक नया राह , एक नया सोच ,
एक नया समाज बनाऊं
जीवन का उदेशय समझू
और सब को समझूं
एक फूल की तरह महकती जाऊं
अभिलषा है
एक नया संसार बनाऊं
अभिलाषा है
सूर्य की किरणों की तरह हर जगह फैल जाऊं
"चाहत तोह अक्सर फूल बनने की होती है "
"हमे तोह अभिलाषा है ... सूरज बन कर हर फूल महकाने की "